भारत-नेपाल मैत्री पर नई चुनौती: पुल पर जांच चौकी से बिगड़ता जनसंपर्क और सीमाई सामंजस्य

दैनिक बिहार संपादक उत्कर्ष कुमार सिंह शिवहर 

भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी के ऐतिहासिक संबंध धार्मिक आध्यात्मिक आस्था और सीमापार व्यापार सदियों से आपसी मैत्री के मजबूत आधार रहे हैं। लेकिन हाल ही में भारत-नेपाल की सीमा पर स्थित मैत्री पुल पर सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) द्वारा स्थापित जांच चौकी के कारण उत्पन्न समस्याओं ने इन रिश्तों की सहजता और विश्वास को चुनौती देना शुरू कर दिया है।

इन्हीं समस्याओं के मद्देनजर नेपाल भारत विश्व मैत्री संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री प्रवीण मैनाली ने भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र रक्सौल का दौरा किया और मैत्री पुल पर लागू की गई जांच व्यवस्था को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की।

जिस पुल को कभी भारत और नेपाल के बीच मैत्री का प्रतीक माना जाता था, आज वही पुल व्यापारियों, यात्रियों, तीर्थयात्रियों और सीमाई नागरिकों के लिए एक असहज अनुभव बन गया है। श्री मैनाली का कहना है कि पुल पर कड़ी जांच व्यवस्था से जहां लोगों को घंटों जाम में फँसना पड़ रहा है, वहीं सीमा पार आने-जाने वाले हर व्यक्ति के मन में भय और असहजता की भावना घर कर गई है।

श्री मैनाली ने कहा कि जांच ज़रूरी है, लेकिन जांच का तरीका मैत्री पर आघात नहीं बनना चाहिए। यह पुल सीमा नहीं, सदियों के रिश्तों की साझा राह है।
भारत और नेपाल का रिश्ता केवल दो देशों के बीच की कूटनीतिक सीमा तक सीमित नहीं है। यह संबंध सांस्कृतिक, पारिवारिक और आत्मीय रहा है। हजारों परिवारों में शादी-ब्याह दोनों देशों में होते हैं, कई नेपाली नागरिक भारत में रोजगार पाते हैं और भारत के सीमाई गांवों में नेपाली नागरिकों का आवागमन पीढ़ियों से चलता आया है। इस पर अचानक कड़ी निगरानी और कागजी प्रक्रियाएं लागू करना, लोगों की जीवनशैली और पारिवारिक संरचना को प्रभावित कर रहा है।

नेपाल की बड़ी आबादी, विशेषकर सीमाई इलाकों के लोग, भारत के सीमावर्ती बाज़ारों से दैनिक जरूरतों का सामान खरीदकर अपने देश ले जाते हैं। ये सिर्फ खरीददारी नहीं, बल्कि सीमापार सामाजिक-सांस्कृतिक एकता का हिस्सा भी है। लेकिन अब हर थैला, हर पैकेट की तलाशी, और लंबी जांच प्रक्रियाओं से व्यापारिक आवागमन बाधित हो रहा है, जिससे आर्थिक असंतुलन भी उत्पन्न हो रहा है।

श्री मैनाली ने आगामी श्रावण मास को लेकर विशेष चिंता जताई। हर वर्ष नेपाल के लाखों श्रद्धालु बोलबम यात्रा के लिए भारत के विभिन्न शिवधामों की ओर कूच करते हैं। देवघर, बैजनाथधाम, बनारस, काशी विश्वनाथ जैसे तीर्थ स्थल इन यात्रियों के आस्था केंद्र हैं। ऐसे में मैत्री पुल पर की जा रही सघन जांच, इन धार्मिक यात्राओं को बाधित कर सकती है और इससे धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुँचने की आशंका है।

श्री मैनाली ने यह स्पष्ट किया कि वे इस समस्या को लेकर नेपाल स्थित भारतीय दूतावास, नेपाल सरकार और भारत सरकार के समक्ष विषय को गंभीरता से उठाएँगे। उन्होंने सुझाव दिया कि जांच चौकी को मैत्री पुल से कुछ दूरी पर स्थानांतरित किया जाए ताकि न तो सुरक्षा से समझौता हो और न ही जनसंपर्क की सहजता पर असर पड़े।
रक्सौल टेक्सटाइल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष अरुण कुमार गुप्ता ने कहा कि जांच के लिए स्थान हो सकता है, लेकिन रिश्तों के बीच दीवार नहीं होनी चाहिए। यह पुल दिलों को जोड़ता है, उसे दस्तावेज़ों की दीवार में न बदला जाए।

रक्सौल और वीरगंज के व्यापारी, ट्रांसपोर्टर, सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय नागरिक भी इस व्यवस्था से असंतुष्ट हैं। लोगों का कहना है कि भारत-नेपाल की यह पुल केवल एक भौगोलिक ढांचा नहीं, बल्कि दो देशों के बीच आत्मीय संवाद का माध्यम है। आज यदि इस पर सहजता न रही, तो जन-जन के बीच अविश्वास की लकीर खिंच सकती है।

भारत और नेपाल के रिश्ते कभी वीजा-पासपोर्ट से बंधे नहीं रहे। ये रिश्ते दिलों से चलते आए हैं—खून से नहीं, भावनाओं से बनते हैं। जांच व्यवस्था की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन उसे लागू करने का तरीका यदि जनभावनाओं और सामाजिक संरचना को नजरअंदाज कर देगा, तो उससे मैत्री पुल मैत्री का प्रतीक न रहकर प्रशासनिक दीवार बन जाएगा।

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